कहीं मातम तो कहीं आग का मातम ,जसौली में नम आंखों से की गई पुष्पवर्षा,लगवाया लंगर

Sara Samay News

सारा समय मीडिया
रायबरेली ।मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि बड़ा इमामबाड़ा में 150 साल से यह मातम हो रहा है. उन्होंने बताया कि इसकी शुरुआत बर्मा से आए कुछ लोगों ने की थी. बर्मा के ऊपर जब हमला हुआ तो वहां से शिया समुदाय के लोग लखनऊ आ गए और हमारे दादा से कहा कि हम लोग बर्मा में आग का मातम करते थे. यहां भी करना चाहते हैं. उन्हें इजाज़त मिल गई और उसके बाद आग का मातम शुरू हो गया.मौलाना ने बताया कि इमाम कर्बला के मैदान में हज़रत इमाम हुसैन को शहीद करने के बाद खेमे (टेंट) में आग लगा दिया था, जिसमें उस समय हजरत इमाम हुसैन के खानदान के छोटे बच्चे और महिलाएं मौजूद थी. जंग खत्म होने के बाद भी यजीदी फौजियों का जुल्म नहीं रुका था. उसी को याद करते हुए हर साल बड़ा इमामबाड़ा में यह आग का मातम होता है. आग पर चल कर बताते हैं कि अगर उस समय कर्बला में होते तो आग पर चल कर इमाम हुसैन के खेमे को बचाते.
इसी के क्रम में मोहर्रम के नौवें दिन ऊंचाहार क्षेत्र के जसौली ग्राम पंचायत में मातम निकाला गया ।जिसमें शामिल मुस्लिम भाइयों को समाजसेवी अखिलेंद्र यादव ,अंकुश मौर्य ,हिमांशु उपाध्याय सहित कई लोगों ने नम आंखों से उनपर पुष्पवर्षा की और उनके लिए लंगर की व्यवस्था की ।

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